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संस्कार

पारीक समाज का इतिहास

महर्षि पराशर वशिष्‍ठ ऋषि के पौत्र एवं शक्ति ऋषि के पुत्र थे, इन्‍हीं के पुत्र वेदव्‍यास हैं जो भारतीय संस्‍कृति के संरक्षक और 18 पुराणों के स्रष्‍टा हैं। महर्षि पराशर से पारीक समाज की उत्‍पत्ति हुई है। पारीक समाज नौ नखों/जाति के अनुसार, बारह गौत्रों में, सत्ताइस कुल देवियों तथा एक सौ आठ वर्गों में समाहित है। महर्षि पराशर वैदिक सूक्‍त स्रष्‍टा, स्‍मृतिकार, आयुर्वेद और ज्‍योतिषशास्‍त्र के प्रवर्तक ऋषियों में से एक हैं। महर्षि पराशर एक ओर रामायण युग के ऋषि प्रवर वशिष्‍ठ से जुड़े हैं और महाभार युग के वेदव्‍यास के द्वारा ज्ञान परम्‍परा को आगे बढ़ान वाले हैं। ऋग्वेद अनुक्रमणी के अनुसार – ऋग्वेद के कई सुक्‍तों का प्रणयन महर्षि पराशर ने किया था। दस राजाओं के युद्ध में विजय पाने वाले सुदास राजा की प्रशस्ति में एवं पितामह वशिष्‍ठ के साथ ऋषि पराशर का उल्‍लेख आया है, निरूक्‍त में पराशर व्‍युत्‍पत्ति ‘बूढ़े ऋषि को उत्‍पन्‍न पुत्र’ के रूप में दी गई है। इसका इतना ही अर्थ है कि वृद्ध वशिष्‍ठ ऋषि को पराशर का आधार प्राप्‍त हुआ था। कहते हैं – पराशर जब गर्भ में थे, तभी इनके द्वारा वेद ध्‍वनि की गई जिसे सुनकर वशिष्‍ठ को अत्‍यंत आनंद हुआ। ऋषि पराशर ने आबालवृद्ध राक्षसों को मारने के लिए महाप्रचंड ‘राक्षस सत्र’ का आयोजन किया। राक्षसों के प्रति ऋषि वशिष्‍ठ पहले ही क्रुद्ध थे, पर ऋषियों ने कहा सभी राक्षस उपद्रवी नहीं, अत: सब का वध उचित नहीं। सभी ऋषियों के आग्रह से वह यज्ञ स्‍थगित कर दिया गया, इस पुण्‍यकृत्‍य के कारण ऋषि पुलस्‍त्‍य ने महर्षि पराशर को वरदान दिया कि ‘तुम सकल शास्‍त्र एवं पुराणों के वक्‍ता बनोगे’। एक आदरणीय ऋषि के नाते महाभारत में ऋषि पराशर का उल्‍लेख अनेकों बार आया है, इन्‍होंने राजा जनक को कल्‍याण प्राप्ति का उपदेश था, कालोपरांत यही उपदेश भीष्‍म ने युधिष्ठिर को बताया था, उसे ही पराशर गीता कहते हैं। ऋषि पराशर अठारह स्‍मृतिकारों में एक प्रमुख हैं। इनकी पराशर स्‍मृति एवं उसके ऊपर आधारित वृहत्‍पराशर संहिता धर्मशास्‍त्र के प्रमुख ग्रंथों में गिने जाते हैं। पराशर स्‍मृति – यज्ञवल्‍क्‍य स्‍मृति एवं गरुड़ पुराण में इस स्‍मृति के काफी उदाहरण एवं सारांश दिए गए हैं, इसमें बारह अध्याय एवं 512 श्‍लोक हैं, इस स्‍मृति की रचना कलयुग में धर्म के रक्षण हेतु की गई है। यह स्‍मृति युगानुरूप प्रगतिशील है। ऋषि पराशर के राजधर्म विषयक मतों का उद्धरण कौटिल्‍य ने अपने ‘अर्थशास्‍त्र’ में अनेकों बार दिया है। यह एक प्रमाणिक ग्रंथ है। महर्षि पराशर का संदेश था कि पृथ्‍वी पर स्‍वर्ग लाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा ‘स्‍वर्ग मानव की मानसिक प्रवृत्ति है, यदि मानसिक प्रवृत्ति को विशिष्‍ट ढंग से प्रवर्तित किया जाए तो यहीं पर स्‍वर्ग है। महर्षि पराशर के निम्‍न सिद्धांत हैं: - # सिद्धांत तात्विक हो, व्‍यवहारिक हो और कौटुम्बिक जीवन में चरितार्थ हो। # सत्‍य सिद्धांतों को पूरा करने के लिए व्रत लिये जावें। इसके लिए बुद्धि, चित्त, शरीर शक्ति को मजबूत करें। # बुद्धि, वित्त, शरीर शक्ति – ये तीनों मिलकर एक उद्देश्‍य में लगें, अलग-अलग दिशा में न जावें। # जीवन पुष्टिमय हो। वसुंधरा पर स्‍वर्ग लाने के लिेए जीवन को निरंतर पुष्‍ट बनाने की आवश्‍यकत है। # क्षत्रियों में शूरता व प्रतिकार क्षमता हो। यानि आज के संदर्भ में सेना में व जनता में इन गुणों का विकास होना चाहिए, जिससे कोई भी दुष्‍ट आंख उठाकर न देख् सके। # प्रभावी नेतृत्‍व होना चाहिए। # ज्ञानी, शक्तिशाली और वैभवशाली पुरुषों को मिलकर समाज को सब प्रकार से शक्तिशाली बनाना चाहिए, समाज में ज्ञान हो, शक्ति और वैभव हो। # परमात्‍मा के प्रति प्रीति, भीति और आत्‍मीयता बढ़ाएं। ये सभी बातें आज के संदर्भ में किसी ना किसी न किसी रूप में उपयोगी हैं, युगानुरूप ये बातें किंचित बाह्य परिवर्तन के साथ सदा ही लाभदायक हैं। महर्षि पराशर में परम ज्ञान और अद्भुत शक्ति थी जिससे इनकी वाणी प्रभावशाली एवं तेजस्‍वी व्‍यक्तित्‍व हमारे समाज में नये प्राणों का संचार करता रहे यही प्रार्थना, कामना व भावना है।